युवाओं की प्रेरणा - स्वामी विवेकानंद

" उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है वे जहां भी गए सर्वप्रथम ही रहे हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता था वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी । " 

रोम्या रोला ने यह बातें भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति की जीवंत प्रतिमूर्ति स्वामी विवेकानंद जी के लिए कहीं। स्वामी विवेकानंद , वह महान व्यक्तित्व थे जिन्होंने संपूर्ण विश्व को भारत की संस्कृति , धर्म के मूल आधार व नैतिक मूल्यों से परिचित करवाया ।12 जनवरी 1863 को कोलकाता के एक कुलीन परिवार में एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ जिसका नाम नरेंद्र रखा गया । अपनी माता भुवनेश्वरी देवी की अति धार्मिक प्रवृत्ति के सानिध्य में 25 वर्ष की आयु में ही नरेंद्र ने गेरुआ वस्त्र धारण करने का निर्णय ले लिया । बचपन से ही अपने जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण नरेंद्र सभी बालकों से अलग थे बाद में अपनी जिज्ञासाओं की शांति के लिए वे रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्य बने और वहां रहकर वेद वेदांतो का एक विस्तृत ज्ञान प्राप्त किया। एक शिष्य के रूप में नरेंद्र ने रामकृष्ण परमहंस जी से विभिन्न प्रकार की विचारधाराओं का अध्ययन किया । 1886 में अपने गुरु की मृत्यु के बाद उन्होंने संपूर्ण भारत में यात्राएं की और इसी दौरान उनका नाम नरेंद्र से बदलकर स्वामी विवेकानंद हो गया स्वामी विवेकानंद गुरु द्वारा प्राप्त ज्ञान को ना सिर्फ भारत में अपितु संपूर्ण विश्व में बांटना चाहते थे 1893 में अमेरिका में आयोजित विश्व धर्म संसद के माध्यम से स्वामी जी को अमेरिका जाने का अवसर प्राप्त हुआ । सम्मेलन में स्वामी जी ने श्रोताओं को "मेरे अमेरिका वासी भाइयों और बहनों" कहकर संबोधित किया तो पूरा सभा भवन 5 मिनट तक तालियों से गूंजता रहा और स्वामी जी के ओजस्वी भाषण में अनेक अमेरिकियों को भी स्वामी जी का भक्त बना दिया। इतिहास में यह प्रथम था जब कोई भारतीय विदेश में सनातन धर्म का परचम लहरा कर आया हो । 
अमेरिका से लौटकर उन्होंने भारत को भी एक नई दिशा प्रदान नई दिशा प्रदान करने का प्रयास किया और युवाओं को धर्म के मर्म से परिचित करवाया और विभिन्न प्रकार के आडंबरो का खुलकर विरोध किया। 

विवेकानंद संपूर्ण देशवासियों को अज्ञान रूपी अंधकार से बाहर निकल कर धर्म व कर्म के प्रति निष्ठावान बनने की शिक्षा दी। उन्होंने लोगों को एक सूक्ति के द्वारा आवाहन दिया और कहा
        " उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरानिबोधत
अर्थात उठो जागो और जब तक अपने लक्ष्य को प्राप्त ना करो तब तक कर्म करते रहो।

स्वामी जी के विचारों में राष्ट्रीयता सर्वत्र व्याप्त थी और उन्होंने अपने विचारों से सदैव युवाओं को आगे बढ़ने का , कर्म करने का और ज्ञान का प्रकाश फैलाने का संदेश दिया। युवाओं को संबोधित करते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा "यदि आप स्वयं पर विश्वास नहीं करेंगे तो आप पर ना कोई अन्य विश्वास करेगा और ना ही ईश्वर पर आप विश्वास कर पाएंगे । " स्वामी जी के यही विचार आज भी हम युवाओं को उत्साह और आत्मविश्वास है भर देते हैं ।  
स्वामी जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की । जीवन के अंतिम समय में स्वामी विवेकानंद ने शुक्ल यजुर्वेद का अध्ययन करते हुए कहा कि भारत को और विवेकानंद चाहिए जो इस विवेकानंद के कार्यों का मूल्यांकन कर सके । 
इस प्रकार के वचनों के साथ स्वामी विवेकानंद ने 4 जुलाई 1902 को समाधि ग्रहण कर ली।  
वर्तमान समय में हमें विवेकानंद जैसे महापुरुषों का संदेश उनका ज्ञान हम सभी के लिए अमूल्य है। भले ही आज स्वामी विवेकानंद हमारे बीच नहीं है परंतु उनके राष्ट्रीयता से ओतप्रोत विचार आज भी युवाओं मैं उसी शक्ति का संचार करते हैं। हम सभी इस बात के साक्षी हैं स्वामी विवेकानंद के विचार आज भी हम सभी को प्रभावित करते हैं और उन्हीं विचारों को जीवित रखने के लिए स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस के अवसर पर हम सभी राष्ट्रीय युवा दिवस को एक पर्व के रूप में धूमधाम से मनाते हैं । 
चिंतन करो , चिंता नहीं 
नये विचारो को जन्म दो।

-अंजली वर्मा

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