महात्मा गांधी तथा उनके विचार

"वैष्णव जन तो तेने कहि जे, पीड़ परायी जाने रे!
पर दुखै उपकार करे तारे,मन अभिमान ना आये रे"!!    

2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर मे जन्मे मोहनदास करमचंद गाँधी अपने विचारों व अडिग आदर्शो से 'महात्मा गाँधी ' ,'युगपुरुष ' तथा राष्ट्रपिता तक का सफर तय किये। महात्मा गाँधी आज विश्व के  सर्वकालिक विभूतियों में शिरोमणि धारण किए हुए हैं। महात्मा गाँधी का जन्मदिन न सिर्फ़ भारत अपितु सम्पूर्ण विश्व में उत्सव का पर्व होता है, महात्मा गाँधी सादगीपूर्ण व्यक्तित्व के जीवंत उदाहरण थे, वे प्रपंच हीन,पदवीहीन अपार मानव थे ,किसी प्रकार की सैन्य शक्ति ,बल, राजशक्ति से हीन न उनकी पहुंच विज्ञान के क्षेत्र में थी और ना ही कला के फिर भी तमाम विश्व उस हाड़ मांस के शरीर वाले विचारों के व्यक्ति से न सिर्फ प्रभावित थे अपितु उनके विचारों को हृदय में संजोए हुए सम्मानपूर्वक उसका अनुसरण भी करते।
उनकी मृत्यु पर अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट,जनरल जॉर्ज मार्शल ने कहा कि, "महात्मा गांधी आज सारी मानवता के आत्मा के प्रतिनिधित्व बन गए हैं ये वो व्यक्तित्व है जिसने सत्य व विनम्रता को, साम्राज्यों से भी ज्यादा शक्तिशाली बनाया है। " अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा है, "आने वाली पीढ़ियाँ शायद ही ये बात समझ पायेगी की हाड़ मांस का ऐसा भी कोई मानव धरती पर जन्मा था। "
गाँधी जी ने देश की जनता के साथ मिलकर संयम के साथ तथा अपने आदर्शों व सिद्धांतों के आधार पर उस ब्रिटिश हुकूमत को विलायत का रास्ता दिखा दिया जिसके बारे में उस समय कहा जाता था कि इस साम्राज्य का सूरज कभी नहीं डूबता। गांधीजी न सिर्फ़ हमारे अपितु संयुक्त राज्य अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग, दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला तथा म्यांमार में आंग शांग सूकी जैसे नेताओं के बीच दर्श्य हैं ।गाँधी जी एवं उसके विचार अनंतकाल के लिए मानवता के रक्षक एवं धरोहर है।
            गाँधी जी दूरदर्शी एवं परोपकारी व्यक्तित्व के थे जो पुरुषार्थ पर विश्वास रखते थे, गाँधी जी सत्य एवं अहिंसा के प्रवर्तक थे वे इन्हें एक ही सिक्के के दो पहलू मानते थे। गाँधी जी के अनुसार अहिंसा एक ऐसा साधन था जिससे विरोधियों में भी सत्य की खोज की जा सकती है, गांधी जी के लिए अहिंसा साधन था तो सत्य, साध्य। वे कहते थे कि व्यक्ति को मन, कर्म, वचन तीनों से अहिंसावादी होना चाहिए, अहिंसा आनंद एवं शांति की प्राप्ति कराता है। वे 'अहिंसा परमधर्मः,सत्य परमधर्मः 'का अनुसरण करते थे।
अहिंसा से संबंधित उनके विचारों के संबंध में मशहूर शायर साहिर लुधियानवी की कुछ पंक्तियाँ प्रासंगिक हैं-
"जंग तो खुद ही एक मसला है, जंग मसलों का हल क्या देगी।
आज खून और आंस बरसेगी, फूंक और एहसास कल देगी।।"
          गाँधी के अनुसार सत्य व अहिंसा सभी प्रकार के मसलों का हल है, उनके अनुसार किसी भी कार्य हेतु आत्मबल और आत्मरक्षा सर्वोपरि है। वे व्यक्तिगत या सामुदायिक किसी प्रकार के विकास एवं सुरक्षा हेतु सत्य तथा अहिंसा रूपी शस्त्र के प्रयोग की बात करते थे व इन्हें ही पर्याप्त व प्रभावशाली मानते थे। वे हमेशा कहते थे किसी भी व्यक्ति से उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई भी कार्य कराना, उसे पराधीनता के बेड़ियों में जकडते हैं और पराधीनता व्यक्ति का सबसे बड़ा दोष है, गांधी किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, उसका प्रथम व सर्वोपरि अधिकार समझते थे।

            अतः महात्मा गांधी एक ऐसे प्रभावशाली व्यक्तित्व का नाम है जिनके नाममात्र में ही अद्भुत प्रभाव एवं तेज का अनुभव होता है ,गाँधी जी के विचारों ने समग्र विश्व में अनेक गैर-सामाजिक कुप्रथाओं का अंत किया है, सत्य एवं अहिंसा रूपी उनके दो शस्त्र से आज एक सुव्यवस्थित, सुसंगठित, सुसंस्कृत व नैतिक मूल्यों पर आधारित विश्व निर्माण का प्रयास जारी है।
महात्मा गाँधी प्रेम,सद्भाव ,भाइचारे, सत्य, अहिंसा व एकता की प्रतिमूर्ति है ,उनके जैसा व्यक्तित्व ना कभी हुआ है और न होगा। हाड़ मांस का शरीर लिए वह वृद्ध लोगों के भीतर उनकी आत्मा जैसे प्रासंगिक है। गाँधी जी ने अपने विचारों एवं पुरुषार्थ से विश्व को सत्य एवं अहिंसा के तरफ एक नयी दिशा प्रदान की है जो अनंतकाल तक दीप्तिमान रहेगी, गाँधी जी अहिंसावादी, सत्यवादी तथा दीन दुखियों के सदैव ही मित्र बनके रहे हैं

            तुम मांस-हीन, तुम रक्त हीन,
            हे अस्थि- शेष!तुम   अस्थिहीन।
            तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल,
            हे चिरपुराण ,हे चिर नवीन!

- आकांक्षा यादव

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